( तर्ज - नागनी जुल्फोंपे दिले ० )
प्यार ! हिंमतसे बेड़ा यह पार है ।
गरचे सोवे तो
खोवेगा सार है || टेक ||
मैं तो चाहूँ के , निर्भर रही जगतमें ।
जीतो मनको , करो योगको सख्तमे
झूठ कामोंसे
बचना सुधार है || १ ||
प्रेम प्रेमीसे राखो , न मगरूर हो
नेमसे नेम अपना वह महशूर हो ।
दुष्ट हो कालभी करदो वार है
मुखसे गोविंद गोविंद गाओ सदा ।
आँखे अपने हि रँगमें रँगाओ सदा ।
दास तुकड्या कहे ,
तो उद्धार है ॥ ३ ॥
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